मालूम है मुझे की मैं कुछ भी लिखु तुम इन शब्दों पर यकीन नहीं करोगे जो बयान करते है मेरा इश्क़।
लेकिन यह मालूम होते हुए भी ना दीवानगी थमती है ना यह कलम और ना ही मेरा इश्क़।
यह तोह कलम की कलाकारी है की हर बार कुछ नए शब्दों में लिखती है
पर तुम्हे तोह मालूम है की यह बस एक ही बात कहती है, “बेइंतहां मोहोब्बत है मुझे तुमसे”।
ना जाने आज फिर यह मालूम होते हुए तुमसे क्यों पूछ रही है
“तुमसे इश्क़ करना सीखा है, किसी और से अब यह कैसे होगा?”
शायद तुम फिर नज़रे चुराके यकीन ना करो इस सवाल में जिसमें छिपा है मेरा इश्क़।
पर तुम्हे मालूम है की चाहे तुम कुछ ना भी कहो
ना यह कलम रुकेगी और ना ही मेरा इश्क़।
ना जाने तुम्हे यह समझाना कितना मुश्किल है
पर बात तोह इतने सी है की
तुम्हें मेरी ग़ज़लों में शब्दों की सजावट दिखी
और मुझे इनमे तुम्हारे लिए मेरा इश्क़।
– कृतिका वशिस्ट