आज रात फिर ख़यालो में तुम हो,
आज फिर लिखने की वजह तुम हो।
इस चाँद की चाँदनी भी तुम हो,
इस रात का अंधेरा भी तुम हो।
मेरी इबादत भी तुम हो ,
मेरा खुदा भी तुम हो।
मेरी मंज़िल भी तुम हो,
मेरी हर राह भी तुम हो।
मेरा हर सवाल भी तुम हो,
मेरा हर जवाब भी तुम हो।
मेरी ज़िन्दगी की हकीकत भी तुम हो,
मेरे ना पुरे होते ख़्वाब भी तुम हो।
मेरी बातों में तुम हो,
मेरी ख़ामोशी में तुम हो।
जो ना हुआ मेरा वोह तुम हो,
जो सब कुछ है मेरा वोह तुम हो।
जो नादान हुआ वोह इश्क़ भी तुम हो,
जो बेइन्तहां हुआ वोह इश्क़ भी तुम हो।
आज फिर ख़यालो में तुम हो,
आज फिर मुझमे तुम हो।
– कृतिका वशिस्ट
Great
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