रात की इस ख़ामोशी में
इस कलम की सरगोशी में
मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हु।
यूह तोह मेरी होके भी यह कलम
तुम्हारी ही बातें करती है सनम
चाहती हु आज यह मेरी सुने
मेरी भी आज यह लिखे
वोह बात जो मैं बताना चाहती हु।
मालुम है तुम इसे नादानी कहते हो
कुछ मेरे इश्क़ की बदनामी कहते हो
बे-पायान होती है मोहोब्बत कुछ को
तुम्हे समझाना चाहती हु।
तुम्हारे साथ होके भी
तुम्हसे दूर रहके भी
इस बे-बाक मोहोब्बत को,
बिना किसे शिकायत के करना जानती हु।
इन आँखों की नमी में
अल्फाज़ो की कमी में
बस यही कहना चाहती हु;
इश्क़ मंज़िल है यह,
कोई राह नहीं जो मोड़ना चाहती हु।
-कृतिका वशिस्ट
(Dec,2014)
वर्तनी को अगर नज़रअन्दाज़ कर दिया जाए तो बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति प्रेम की !
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अपनी वर्तनी को सुधारने की कोशिश जारी है। शायद इसमें भी गलतियां हो।
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ati sundar rachna…
You write beautifully in hindi too. Just keep going… 🙂
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Thank you so much for the appreciation. 🙂 Means a lot!
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